विश्वगुरु की भारतीययात्रा का शुभारंभ!

सीता राम शर्मा
वसुधैव कुटुम्बकम भारत का आत्मीय भाव है और कर्म भी! आशा है और अभिलाषा भी! धारणा है और ध्येय भी! जी 20 के भव्य और सफल समापन समारोह का मुख्य मंत्र एक धरती एक परिवार एक भविष्य भी वसुधैव कुटुम्बकम का सुगम और विस्तृत अर्थ ही है! भारत में अत्यंत प्राचीन काल से सामुहिक ईश्वरीय साधना और पूजा कर्म की पद्धति का प्रारंभ और अंत वैश्विक कल्याण की प्रार्थना और उद्घोष के साथ होता आया है। कलियुग के वर्तमान कालखंड में, जब ज्ञान-विज्ञान के तीव्र विकास क्रम से मनुष्य जाति ने अपने जीवन अस्तित्व के मूल आधार, अपनी मनुष्यता के भाव और कर्म के प्रति भटकाव
और अमानवीय हिंसा कर्म के मार्ग का अनुसरण कर लिया है तब भी इस भयावह भटकाव और टकराव के समाधान का सही
और सरल मार्ग वैश्विक मानवीय समुदाय में वसुधैव कुटुम्बकम के भाव और कर्म का प्रचार प्रसार करना ही है! बदलते भटकते
मानवीय और वैश्विक परिदृश्य में वर्षों से भारत और भारतीयों की चिंता का एक मुख्य केंद्र बिंदु मनुष्य जाति और वैश्विक समुदाय में तेजी से पनपती आपसी घृणा और हिंसा की प्रवृति है जिसके समाधान के लिए हर भारतीय अपने उसी प्राचीन सिद्ध जीवन मंत्र का वैश्विक प्रचार प्रसार चाहता है जो वर्तमान समय के आत्मघाती और विनाशकारी अमानवीय चिंतन और कृत्य से पूर्ण रुपेण मुक्ति दिला सकता है। अब सवाल यह कि भारत या आम भारतीय वैश्विक मानवीय संसार को लेकर इतना चिंतित क्यों है? प्रभावी भौतिकवाद और उपभोक्तावाद के वर्तमान युग विश्वगुरु की भारतीय यात्रा का शुभारंभ!